*दर्शन किसे कहते हैं ?*
यूं तो हम सब समझते हैं हम beas जाते हैं, या बाबाजी अलग अलग सेंटर्स में जाते हैं, वहां दर्शन देते हैं....हम कहते हैं आज बाबाजी के दर्शन करके निहाल हो गए.....बड़ी अच्छी बात है, क्यों कि बाहरी दर्शन जबतक हम ना करें, तो अंदरूनी दर्शन में किस स्वरूप के दर्शन होंगे ? और जब हम ये बाहरी दर्शन करते हैं तो उस सतगुरु का स्वरूप इतना सुहावना होता है कि नज़र हटने को जी नहीं करता...
ये एक तड़प होती है, जो सतगुरु हमारे अंदर खुद पैदा करते हैं, वरना हमारी तो कोई हैसियत ही नहीं कि हम उस स्वरूप के दर्शन भी कर सके। और फिर जो सच्चे प्रेमी हैं, उनके हृदय में एक अनोखी तड़प पैदा हो जाती है, जो सबके हिस्से में नहीं आती....और वो सच्चे प्रेमी बस उसी स्वरूप का ध्यान करते रहते हैं.....और कोई खयाल उनके मन में पैदा ही नहीं हो सकता, वो भरी भीड़ में भी खुद को अकेला पाते हैं....हर पल वो उस स्वरूप के साथ रहना चाहते हैं, पर फिर गुरु उन्हें विछोड़ा भी देते हैं....वो क्यों ? ताकि वो तड़प और पक्की हो जाये, और फिर वह तड़प बेबसी का रूप धारण कर लेती है....बेबसी क्या है ?
बेबसी है वो शबरी का प्रेम और प्रतीक्षा....उसे पता भी न था राम कब आएंगे, पर विश्वास था कि आएंगे ज़रूर....उसे सुध भी न रही कि बेर चखते चखते, वो झूठे हो रहे थे ! बेबसी थी साई बुल्लेशाह की...बिछोडे ने उनको इतना व्याकुल कर दिया कि भरे बाजार में घुंघरू बांधके नाचने लगे क्यों कि उन्हें पता था उनके गुरु को निर्त्य भाता है, और उसे रिझाने के लिए कई घंटे आंखों में तड़प के आंसूं लिए नाचते रहे!
बेबसी होती है शंख की...वो समुन्द्र का एक जीव है, पर ज्यों ही समुन्द्र से निकाला गया, जान चली गयी, फिर भी मंदिर मंदिर जाके दहाड़ता रहता है बेबसी वो है, चकोर चाँद को देखता रहता है, उसकी नज़र हटती ही नही उस चाँद पर से, उसे ये भी सुध ही नहीं चलती उसकी गर्दन टेढ़ी होती जाती है और जान निकल जाती है ऐसे कई उदहारण हैं जो बयान करते हैं सच्चे दर्शन क्या है