ऐसा हुआ एक बहुत अदभुत जादूगर हुआ: हुदिनी।
और उसके जीवन में उसने बड़े चमत्कार किए, जैसा की कोई दूसरा जादूगर कभी नहीं कर पाया है। और वह आदमी बड़े गजब का आदमी था। और उसने सदा यह स्वीकार किया है कि ये सिर्फ हाथ की सफाईयां हैं। उसने कभी धोखा न दिया।
उसने ऐसी हजारों बातें कीं, कि जिनको अगर वह चाहता तो दुनिया का सबसे बड़ा अवतारी पुरुष हो जाता। तुम्हारे साईबाबा इत्यादि सब फीके हैं, दो कौड़ी के हैं। हुदिनी की कला बड़ी अनूठी थी।
दुनिया में ऐसा कोई ताला नहीं है, जो उसने सेकेंड में न खोल दिया हो। उसके ऊपर जंजीरें बांधी गई, हथकड़ियां बांधी गई, पानी में सागर में फेंका गया। सेकेंड न लगे और वह बाहर आ गया, सब जंजीरें अलग।
जेलखानों में डाला गया; इंग्लैंड के जेलखानों में, अमेरिका के जेलखानों में, स्पेन के जेलखानों में, सख्त से सख्त जहां पहरा है, क्षणभर बाद वह बाहर खड़ा है। कोई समझ नहीं पाए, कि वह कैसे बाहर आता? क्या होता? उसने सब व्यवस्था तुड़वा दी। लेकिन उसने कभी कहा नहीं, कि मैं कोई सिद्ध पुरुष हूं। उसने इतना ही कहा, कि सब हाथ की सफाई है
लेकिन एक बार वह मुश्किल में पड़ गया। फ्रांस में पेरिस में वह प्रयोग कर रहा था। सारी दुनिया में वह सफल हुआ, वहां आकर हार गया। एक जेलखाने में उसे डाला गया, जहां से उसे निकलकर आना था। जिंदगीभर में वह बड़े से बड़े जेलखानों से निकल गया। और ऐसी भी जंजीरें हो, उसने खोल लीं बिना किसी चाबियों के। क्या थी उसकी कला, बड़ा कठिन है कहना। और कभी उसने दावा किया नहीं, कि मैं कोई चमत्कारी हू, या कोई ईश्वरी व्यक्ति हूं, कुछ भी नहीं। मगर वहां वह हार गया।
जो आदमी तीन सेकेंड में बाहर आ जाता और ज्यादा से ज्यादा तीन मिनट लेता, उसको तीन घंटे लग गए और वह बाहर न आया। लोग घबड़ा गए। बाहर हजारों लोगों की भीड़ थी देखने। क्या हो गया? मामला यह हुआ कि मजाक की थी पुलिस अधिकारियों ने।
ताला लगाया ही न था, दरवाजा खुला छोड़ दिया था; और वह ताला खोज रहा था। ताला हो तो खोल ले। ताला था नहीं वह घबड़ा गया। उसे यह खयाल भी न आया घबड़ाहट में कि दरवाजा सिर्फ अटका है।
वह इतना परेशान हो गया कि ताला छिपा कहां है? कहीं न कहीं ताला होगा। सब कोने-कातर छान डाले। कमरे के दूसरी तरफ छान डाला। हो सकता है, कोई धोखे का दरवाजा लगा है जो दिखाई न पड़ता हो दरवाजा और वह यह दरवाजा न हो।
दीवाल का कोना-कोना छान गया लेकिन कहीं कोई ताला हो, तो मिल जाए। और जब ताला ही न हो, तो तुम्हारे पास कोई भी चाबी हो, तो क्या खाक काम आएगी? तीन घंटे बाद भी वह न निकलता।
निकलने का कारण तो यह हुआ, कि वह इतना थक गया और पसीने-पसीने हो गया, कि बेहोश होकर गिर पड़ा। धक्का लगने से दरवाजा खुल गया। वह बाहर पड़े थे। पहली दफा जिंदगी में वह असफल हुआ। मजाक के सामने जादू हार गया।
कारण? कारण वही है, जो हर आदमी की जिंदगी में घट रहा है। तुम परमात्मा के दरवाजे पर अगर हार रहे हो, तो कारण यह है, कि तुम ताला खोज रहे हो। और ताला वहां है नहीं।
मुक्ता द्वार महल का--उस महल का द्वार मुक्त है, खुला है। अटका भी नहीं है। उतनी भी जरूरत नहीं है कि तुम बेहोश होकर गिरो, धक्का लगे, जब कहीं द्वार खुले। दरवाजा खुला ही है। जोग समाधि सुख सुरति सों, सहजै सहजै आव।
और इतनी सहजता से परमात्मा में प्रवेश हो जाता है, कि तुम नाहक ही बड़े जतन कर करके अपने को थका रहे हो, पसीना-पसीना कर रहे हो। कोई शीर्षासन लगाए खड़ा है, कोई उल्टी-सीधी कवायद कर रहा है, कोई योग साध रहा है, कोई नाक बंद किए, श्वास को रोके हुए है, कोई कानों में उंगलियां डाले हुए है, कोई आंखों को दबाकर प्रकाश देख रहा है।
हजार तरह की नासमझियां, सारे संसार में प्रचलित हैं। वे सब कुंजियां हैं खोलने की उस ताले को, जो ताला है ही नहीं; उस द्वार को खोलने के उपाय, जो खुला ही है। तुम्हारे उपाय ही तुम्हारे हार को खुलने न देंगे।
AYOLAL JHULELAL BORIVALI.
Gorai. [09/04, 21:49] +91 98336 96487:एक अग्रवाल परिवार था। पूरा परिवार कान्हा जी का भक्त था। वो अपने कृष्णा से बहुत प्यार करता था।
उन्होंने अपने घर में ठाकुर जी को विराजमान किया हुआ था। अग्रवाल परिवार का एक नियम था ; वो लोग कहीं भी बाहर जाते तो , अपने ठाकुर जी के सामने माथा टेकते थे,और जब वापिस आते तो भी माथा टेकते थे और अपने कृष्णा का शुक्रिया अदा करते थे।
ये काम घर का प्रत्येक व्यक्ति करता था।
एक बार घर का छोटा बेटा जो तेरह साल का था, बिना माथा टेके ही बाहर चला गया, कुछ व्यस्तता के कारण भूल गया। वहां उसने देखा, कि कुछ लड़कों में लड़ाई हो रही है।वो भी वहां खड़ा हो गया।
लड़के आपस में लड़ रहे थे।उन लोगों ने उसे (छोटे बेटे को) दूसरी पार्टी का समझकर पकड़ लिया। एक लड़के ने कैंची निकालकर उसके गले पर वार करने शुरू कर दिये।उसने कई वार किये।
तब तक उस परिवार का बड़ा बेटा आ गया,और उसे देखकर बाकी के सब लड़के भाग गये।छोटा बेटा बेहोश हो गया था। बड़ा बेटा उसे घर ले आया। उसका खून बहता देखकर उसकी मां घबरा गई।
वह अपने घर के मंदिर में ठाकुर जी के चरणों मे बैठकर रोने लगी।तब तक घरवाले छोटे बेटे को हॉस्पिटल ले गये।
इधर उसकी मां रोते हुए लडू गोपाल से कह रही थी- आप तो भक्तों के अंग-संग रहते हो,फिर भी ये सब हो गया।
रोते-रोते उसकी आंख लग गई और उसने देखा, कृष्णा खड़े हैं , और उनके दोनों हाथों से खून निकल रहा है।
कृष्णा बोले- बेटी! आज अगर मैं वहां ना होता, तो तेरा बेटा मारा जाता। वह कैंची मैंने इसकी गर्दन तक नहीं पहुंचने दी। वह मेरे हाथों में लगती रही और तेरे बेटे को केवल मामूली सी ही चोट लगी है। वह केवल डर के कारण बेहोश हो गया है।
वो आज सुबह माथा टेके बिना और दर्शन करे बिना ही घर से निकल गया था।होना कुछ और था लेकिन टल गया।
वह (मां) एकदम चौंक कर उठी और कृष्णा के चरणों मे लेट गई, और बोली- हे प्रभू! हमारे लिए आपने इतने कष्ट उठाये और भावविभोर हो रोने लगी और ठाकुर जी से क्षमा याचना की।
तभी उसका बेटा हॉस्पिटल से लौटकर आया।उसनें माँ को बताया- सब ठीक है। बस थोड़ी सी चोट है।
तभी छोटा बेटा और पिता जी भी घर आ गए। छोटे बेटे ने अपने माँ औऱ पिताजी को सब बात बताई, मुझे भगवान जी ने बचाया है।
कैंची तो उस लड़के ने लगातार मेरे गले पर मारी थी, लेकिन फिर भी चोट बहुत ही कम लगी।
तब उसकी मां ने परिवार को पूरी बात बताई। सुनकर छोटे बेटे ने कहा- आज के बाद कभी भी कृष्णा जी को माथा टेके बिना कहीं भी नहीं जाऊंगा।
हमें भी अपने कृष्णा के ऊपर पूरा विश्वास करना चाहिए।कहीं भी आते-जाते हमें कृष्णा के दर्शन करके आना-जाना चाहिए और हर वक्त उनका शुक्रिया अदा करते रहना चाहिए।
जय श्री राधे कृष्णा जी