एक वक़्त की बात हैं डेरे में एक बच्चा गुम हो गय था। घूमते घूमतेवो बच्चा बस स्टैंड पर चल गया और संगत के साथ ही बस में चढ़ गया। बस में बच्चे की टिकट न लगनेके कारण कंडक्टर ने सोचा कि बस में ही किसी का बच्चा होगा। बस पटियाला पहुँच गई और वहां सभी संगत उतर कर अपने घरो को जाने लगे और वो बच्चा रोने लगा। फिर कंडक्टर को याद आया कि ये बच्चातो डेरे से बस मैं चढ़ा था। तभी आस पास के लोगो ने सलाह करके बोला कि इस बच्चे को फ़िर से डेरेमें छोङ आये। कंडक्टर बच्चे को लेकर डेरे चला गया।इधर डेरे में भी खबर हो गई कि बच्चा गुम हो गया हैं। और ये बात हुजूर तक भी पहुँच गयी। कंडक्टर बच्चे को लेकर डेरे समिति पहूंच गया और बच्चे को दे दिया, फ़िर बापस जाने लगा, अचानक उसके मन में ख्याल आय कि डेरे और सतसंग के बारे में काफी सुना हैँ क्यू न मैं सुबह सत्संग सुन कर ही जाऊ और वो डेरे में ही रुक गया। अगली सुबह उसने हुजूर का सत्संग सुना। उसी दिन संगत के लिये नामदान की भी पर्ची कट रही थी और हुजूर नामदान दे रहे थे।जब उसने नामदान के लिये संगत को हुजूर के सामने पेश होते हुए देखा तो उसके मन में भी आया कि क्यों न में भी वहाँ जाऊ और इसी बहाने वो हुजूर के सामने नामदान के लिये आ गया।जब उसकी बारी आई तो सेवादार ने कहा कि हुजूर ये तो वही आदमी हैं जो उस गुम हुए बच्चे को बापस लाया था। इस पर हुजूर ने बड़े ही प्यार से फ़रमाया कि " ये बच्चेको नही बच्चा इसको यहाँ लेकर आय था, क्युकी आज इसके नामदान का समय था, और हुजूर ने उसे नामदान कि बक्शीश की।
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इसलिए दोस्तो परमात्मा ने जिस पर अपनी मोहर लगा दी हैं वो चाहे तो सात समुन्दर पार ही क्यों ना हो सतगुरु उसे चुम्बक की तरह आपने पास खीच ही लाते हैँ। क्युकी वो जहा कही भी होगे परमात्मा हमेशा से उसके साथ वही होगा और जिसे नामदान की बक्शीश करनी हो उसे किसी न किसी बहाने से बुला ही लेते हैं। उस सच्चे परमात्मा की लीला वही जाने।हमे तो उसकी दरगाह मैं सिर झुका कर बस उसके नाम का सिमरन ही करतेरहना चाहिए और कोशिश ये करनी चहिये की हर सॉस में उस खुदा उस सच्चे परमात्मा का नाम बसा हो। बाकी उस मालिक की दया मौज हैँ। वो क्या चाहता हैं।
गुरु प्यारी साध संगत राधा स्वामी
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