करतारपुर में श्री गुरुनानकदेव जी के दर्शन करने के लिए एक दिन बहुत संगत आ गयी। उस टाईम वहाँ लंगर प्रसाद चल रहा था। आई हुई बहुत सी संगत की वजह से वहाँ लंगर प्रसाद कम पड़ने लगा।।
ये बात जब सेवक जी ने आ कर गुरु नानक महाराज जी को बताया तो, सतगुरु बाबा गुरु नानक जी ने उस सेवक को हुक्म किया की, कोई सिख सामने कीकर के वृक्ष पर चढ़ कर उसे हिलाओ उससे मिठाइयां बरसेंगी वो मिठाइयां आई संगत में बाँट दो।।
ये सुनकर गुरु पुत्र बाबा श्री चन्द जी और बाबा लखमीचंद जी बोले, बाबा जी कीकर का तो अपना भी कोई फल नही होता बस कांटे ही काँटे होते है उससे कहाँ मिठाइयां बरसेंगी।।
कुछ कच्ची श्रद्धा वाले भगत बोले..सारा संसार घूम घूम कर बज़ुर्गी में गुरु नानक साहेब जी सठिया गए है, भला कीकर से कब मिठाइयां बरसी है?
ये सब बातें सुन रहे भाई लहणे को हुक्म हुआ, भाई लहणे तू चढ़.........
बिना इक पल की देर लगाए भाई लहणा कीकर पर चढ़ गए।
और भाई लहणा जोर जोर से कीकर को हिलाने लगे, दुनिया ने ये सब देखा......
कीकर से मिठाइयां बरसी और वे सारी मिठाइयां सारी संगत खाई और जब सारी संगत त्रिपत हो गयी तो हुक्म हुआ।
लहणे अब तू नीचे आजा......
तो भाई लहणा बाबा जी के आदेश से नीचे आ गए।गुरु नानक साहेब जी ने पूछा भाई लहणे को....
जब किसी भी संत को इस बात पर भरोसा ही नही था की कीकर से मिठाइयाँ आएगी,
तो तूने कैसे मुझ पे भरोसा किया...
इस प्रसन्न के जवाब में भाई लहणे ने कहा सतगुरु जी, आप ने ही तो सिखाया है कब, क्या, कैसे, क्यों, किन्तु, परन्तु, लेकिन ये शब्द सेवक
के लिए नही बने।। मेरे आप के ऊपर के विश्वास ने मुझे कहा कि जब बाबा जी ने कहा है, तो मिठाइयां जरूर बरसेंगी।।
मेरा गुरु पूरा है। मेरा गुरु समर्थ है। रा गुरु सच्चा है। मेरी अक्ल् छोटी है पर मेरा गुरु कभी छोटा नहीं।।
बाबा गुरु नानक साहेब जी ने जब ये सुना, ये सुनते ही भाई लहणे को छाती से लगा लिया।।
यही भाई लहणा गुरु अंगददेव बनकर गुरु नानक साहेब की गद्दी पर विराजमान हुए।। जय जय सतगुरुजी।
सतनाम श्री वाहे गुरू।